Tuesday, December 30, 2014

यूपी की मुस्लिम राजनीति का नया अवतार

परवेज़ सागर
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की राजनीति करने के लिए एक नया अवतार आ गया है. ये हैं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदउद्दीन औवेसी. हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदउद्दीन औवेसी को राजनीति अपने पिता सुल्तान सलाउद्दीन औवेसी से विरासत में मिली है. कभी हैदराबाद तक सीमित एआईएमआईएम ने हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा की दो सीटें जीतकर वहां की सियासी ज़मीन पर कदम रखे हैं. ओवैसी की नज़र अब सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश पर है.

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतों पर अपना हक़ जताने वाली समाजवादी पार्टी ओवैसी की आहट से परेशान है. सबसे ज़्यादा परेशान हैं सपा नेता आज़म खान. सपा में आज़म खान को सूबे का मुस्लिम चेहरा माना जाता है. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी आज़म खान को बहुत मानते हैं. सरकार में उनका मुकाम दूसरे नम्बर पर माना जाता है. कई मामलों में वो सुपर सीएम की भूमिका में भी नज़र आते हैं. खुद को प्रदेश के मुसलमानों का सबसे बड़ा नेता समझने वाले आज़म खान ओवैसी की काबलियत और उनके हुनर से अच्छी तरह वाकिफ हैं. वे सपा में तो मुस्लिम नेताओं के कद को अपने से ऊँचा होने से रोकते रहे लेकिन औवेसी को कैसे रोकेंगे, समझ नहीं आ रहा. यही वजह है कि ओवैसी को आज़मगढ़ में सभा की करने की इजाज़त नहीं दी गई.

आज़म खान को इस बात का अहसास है कि ओवैसी के यूपी में आ जाने से मुस्लिम समाज में उनकी अहमियत कम हो सकती है. हालांकि, आजम की इस सोच का यूपी में पहले भी दूसरे मुस्लिम नेता विरोध करते रहे हैं. राज्यसभा सदस्य रहे पत्रकार शाहिद सिद्दीकी इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं. पेशे से पत्रकार सिद्दीकी का सपा से जुड़ाव कभी भी आज़म खान को रास नही आया. मौका मिलते ही आज़म ने उन्हे पार्टी से बाहर करा दिया. दरअसल शाहिद अपने अखबार के लिए नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू कर आए थे. लेकिन औवेसी तो एक दूसरे राजनीतिक दल से आते हैं जो खुद मुस्लिमों की आवाज़ उठाने वाला दल कहलाता है. ऐसे में आज़म खान अब नई रणनीति बनाने को मजबूर हो सकते हैं.

2017 में राज्य के विधानसभा चुनाव होने हैं. सभी राजनीतिक दल इसकी तैयारी में जुटे हैं. समाजवादी पार्टी पहले से ही बीजेपी और मोदी के बढ़ते प्रभाव से परेशान थी, उस पर ओवैसी के यूपी में आने से उनकी दिक्कतों में इज़ाफा हो गया है.

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों की संख्या काफी ज़्यादा है. इन्ही वोटों की वजह से 2012 में समाजवादी पार्टी ने बहुमत से ज्यादा सीटें हासिल कर यूपी में सत्ता हासिल की थी. सपा ने मुस्लिम मतदाताओं से चुनाव में जो वादे किए थे वो अभी पूरे नही हुए हैं. मुस्लिम वोटर पहले ही पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं. ऐसे में हैदराबाद लोकसभा की सीट पर लगातार तीसरी बार जीते ओवैसी सपा के लिए मुश्किल बढ़ाते दिख रहे हैं. उनकी पार्टी को आमतौर पर मुस्लिम राजनैतिक संगठन या मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है. आन्ध्र और तेलंगाना में मुसलमान बड़ी तादाद में ओवैसी की पार्टी का समर्थन करते रहे हैं.

यूपी में मुस्लिम सपा से नाराज़ हैं. बसपा पर भरोसा नहीं है. कांग्रेस का वजूद नहीं है. बीजेपी को तो वोट देंगे नहीं. तो ऐसे में ओवैसी की पार्टी को यूपी के मुसलमानों का साथ मिल सकता है. हां, मुस्लिम वोट में बिखराव हुआ तो फायदा भाजपा को ही मिलेगा.

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