Friday, May 20, 2011

चापलूसी हुनर जयते...

-परवेज़ सागर-

हमारे यहां चापलूसी एक बड़े काम की चीज़ है। खासकर राजनीति में चापलूसी का बड़ा महत्व है। चापलूसी का मंत्र जिसने भी पा लिया वो धन्य हो गया। उसके लिये तरक्की के सारे रास्ते खुल जाते हैं। ऐसे कई राजनेता हैं जो चापलूसी ज्ञान पाकर ही सफलता के रास्ते पर आये। दरअसल चापलूसी कराना एक अलग बात है लेकिन चापलूसी करना एक हुनर है।

चापलूसी का हुनर जिन लोगों के पास होता है वो बड़े कामयाब होतें हैं। चापलूसी के चलते लोग किसी को भी अर्श तक पंहुचा सकते हैं। हमारे देश मे तो चापलूसी मंत्र के बिना सियासत और नौकरशाही में पकड़ बना पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। राजधानी दिल्ली के सियासी गलियारों में तो चापलूसी के सहारे ही सत्ता का गुरुमंत्र मिल सकता है। सियासत में एक से एक बड़े चापलूस हैं जिनकी दुकान उनके हुनर से ही चल रही है। पार्टी चाहे कोई भी हो इस हुनर के माहिर लोग सब जगह पर हैं। यही वो लोग हैं जो बिना किसी कुर्सी के नेताओं को राजा भी बना दें तो कम नही। जितना बड़ा हुनर उतनी बड़ी कामयाबी।

24 अकबर रोड़ हो या फिर 11 अशोक रोड़ सभी जगहों पर ऐसे हुनरबाज़ लोग आपको टहलते हुये मिल जाते हैं। उनके हुनर का असर ही होता है कि नेता जी के आते ही कमरे मे कोई जाये ना जाये लेकिन चापलूस हुनर बाज़ सबसे पहले कमरे में दाखिल हो जाते हैं। बाहर खड़े आम लोग उनके इस हुनर को देखकर दंग रह जाते हैं और यही नही आम लोगों की नज़र में उनकी अहमियत भी बढ़ जाती है। इस रौब रुतबे को देखकर लोग चापलूस जी के झांसे मे फंसने को तैयार हो जाते है यहां तक कि कई बड़े काम चुटकी मे करा डालने के वादे भी वहीं हो जाते हैं।

चुनाव के दौर मे अक्सर ऐसे लोगों की ड़ीमांड बहुत बढ़ जाती है। चुनाव चाहे लोकसभा के हों या फिर विधान सभा के टिकट पाने की होड़ तो नेताओं मे लगी ही रहती है। क्षेत्रीय नेताओं को अपने राष्ट्रीय नेताओं से सीधी बात करने का मौका तो कम ही मिल पाता है। चुनाव मे बड़े नेता मसरुफ भी ज़्यादा रहते हैं। अब क्षेत्रीय नेता टिकट पाने के लिये रास्ते तलाश करते हैं और उनकी तलाश पूरी होती है इन्ही हुनरमन्द लोगों के पास आकर। जी हां ऐसे लोग टिकट दिलाने में तो ओर भी माहिर हो जाते हैं। यहां तक कि टिकट के दाम भी वही लोग तय करते हैं। बस टिकट पाने वालों का बन गया काम।

कुछ नेता जो राजनीति के सफर मे आगे बढ़ रहे होतें हैं उन्हे भी ऐसे लोगों की बड़ी ज़रुरत रहती है। मान लिजीये कि नेता जी किसी कार्यक्रम में गये तो वहां यही हुनर बाज़ लोग नेता जी का बखान करते हैं। लोगों की नेता जी पंहुच के बारे में विस्तार से बताते हैं। तभी तो लोगों को पता चलता है कि नेता जी कितने रसूख वाले हैं। लोगों मे नेताजी का हव्वा मे बनाने मे ऐसे लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अब ये हुनरमन्द लोग ना हों तो लोगों को क्या पता चले कि नेता जी आखिर हैं क्या चीज़।

नौकरशाही में भी ऐसे लोगों की बड़ी पूछ है साहब। देश की राजधानी हो या प्रदेशों की, सभी जगह चापसूल मंत्र के ज्ञाता लोगों की भूमिका खास रहती है। नौकरशाही मे ये लोग महकमें के भी होते हैं और बाहर के भी लेकिन बाहर लोग राजनीति के मुकाबले यहां ज़रा कम ही चल पाते हैं। किसी की फाइल को आगे बढ़ाने के दाम तय करने हों या कोई लेनदेन का मशवरा करना हो तो ऐसे लोग ही काम आते हैं। साहब को मशवरा भी देतें हैं और झंझटों से बचने का रास्ता भी सुझाते हैं। इसी बहाने अपना भी उल्ला सीधा करते हैं। यही नही आम लोगों के सामने साहब के करीबी बनकर मलाई भी खाते हैं।

इस तरह के लोगों की भारत मे कोई कमी नही है जो इस हुनर को सीखकर आगे बढ़ गये हैं। लेकिन हकीकत ये है कि ऐसे लोगों के बिना आज की राजनीति और नौकरशाही की कल्पना करना थोड़ा सा मुश्किल लगता है। दरअसल इन लोगों की ज़रुरत नेताओं और अधिकारियों को ही नही हम सभी को होती है। जब भी कोई काम करना हो तो आमतौर हम खुद ऐसे आदमी की तलाश करते हैं जो नेताजी या साहब का खास हो। कभी ये नही सोचते कि वो आदमी खास बना कैसे। अरे जनाब यही वो हुनर है जो उस आदमी को खास बना देता है। और उसी की वजह से हम और आप उसे तलाश करते हैं। क्योंकि सीधे रास्ते से काम कराना कितना मुश्किल है ये आप भी जानते हैं और हम भी।

चापलूसी का हुनर कुछ लोगों मे जन्मजात होता लेकिन अधिकतर उसे राजनीति और नौकरशाही में आने के बाद सीख पाते हैं। वैसे नेताओं और अधिकारियों के आस-पास रहने से भी इस हुनर का ज्ञान मिल जाता है। इसी हुनर का कमाल है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के दो दिवसीय अधिवेशन मे विधानसभा का टिकट पाने की होड़ मे लगे ऐसे ही कुछ चापलूस नेताओं ने कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी को प्रदेश की अगली मुख्यमंत्री बता डाला। ऐसे मे मेड़म का खुश होना लाज़मी था। साथ खड़े सभी कार्यकर्ताओं ने भी जोश मे मेड़म की जय-जयकार ड़ाली। ये तो एक नमूनाभर है ऐसे ही लोगों की एक बड़ी जमात कांग्रेस के युवराज के साथ भी चलती है।

अब आप इसी बात से अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे समाज में चापलूसी कितनी अहम चीज़ है अगर ये ना होती तो शायद कई बड़े नेताओं का वजूद भी ना होता। नौकरशाही में भी मज़ा ना होता। लेकिन कभी कभी ये हुनर होने का खामियाज़ा भी भुगतना पड़ता है।

Tuesday, May 17, 2011

सियासत है एक जंग, कभी तुम कभी हम

इन दिनों गर्मी की तपिश जैसे जैसे बढ़ रही है। लगता है वैसे ही देश की सियासत भी गर्माती जा रही है। हाल ही पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव निपटे हैं तो लग रहा था कि अब सभी पार्टियों के नेता आराम करेंगे लेकिन ये क्या यहां तो हालात ओर गर्म होते जा रहे हैं लग रहा जैसे देश मे कल ही लोकसभा चुनाव होने वाले हों।

देश की सभी राजनीतिक पार्टियां बस जैसे मुद्दों की ताक में बैठी हैं मौका मिलते ही टूट पड़ रही हैं। हक़ीक़त तो ये है कि ये सारी क़वायद केवल सियासी उल्लू सीधा करने की है। हर पार्टी और नेता बस जनता को ये दिखाने की कोशिश में लगें हैं कि बस हम ही हैं जनता के सच्चे प्रतिनिधि जो आपकी आवाज़ उठा रहे हैं। मामला कोई भी हो बस उसे भुनाने के लिये नेताओं और राजनीतिक दलों में एक होड़ से मची हुई है। सभी राजनीतिक दल बस सियासी कुश्ती लड़ते दिख रहे हैं। कभी यूपीए ऊपर और कभी एनडीए। कई बार लगता है जैसे सरकार और विपक्ष के बीच कोई सांठगांठ हो। बस जनता को उलझाये रखो और अपना काम चलाये रखो।

केन्द्र की यूपीए-2 सरकार अपने कारिन्दों की वजह से लगातार चर्चाओं मे बनी हई है। आए दिन नये-नए घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। रोज़ नये किस्से रोज़ नई कहानी... फिर भी सरकार चल रही है। लेकिन विपक्षी पार्टियां भी कम नहीं मौका पाते है सरकार पर हमला बोलने से नही चूकती। पहले कृषि मंत्री शरद पवार के चर्चे रहे। उनको लेकर विपक्षी पार्टियों ने खूब हो हल्ला किया लेकिन नतीजा क्या निकला। कुछ भी नहीं। वो अभी भी अपने काम मशगूल हैं। हालांकि बाद में 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले का बवाल इतना बढ़ा कि सरकार को अपने सहयोगी दल के एक मंत्री को हटाना ही नहीं बल्कि जेल भेजना पड़ा। यहां तक कि देश के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री का तमगा पा चुके मनमोहन सिंह को देश से माफी मांगनी पड़ी। खैर माफी तो प्रधानमंत्री कई बार मांग चुके हैं और ना जाने कितनी बार और मांगेंगे। सरकार के कारनामे जो ऐसे हैं। लेकिन सरकार चलाना आसान नहीं होता। इसलिये सरकार भी मौक़ा नही छोड़ती। वक्त बेवक्त पिवक्ष पर पलटवार करती रहती है। लेकिन मुद्दों की तलाश तो राजधानी के सभी नेताओं को रहती है।

देश की राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो कांग्रेस और भाजपा के बीच की सियासी लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है। पहले कॉमनवेल्थ और भ्रष्टाचार के मुद्दे ने शीला सरकार को ख़ासा परेशान किया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुये। भाजपा के बड़े नेताओं ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर शिरकत की। जैसे तैसे मामला शान्त हुआ तो मंहगाई का मुद्दा सरकार के लिये गले की फांस बन गया। देशभर मे केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का दौर चला लेकिन हुआ कुछ नहीं। कॉमनवेल्थ खेल आयोजन कमेटी के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की कारगुज़ारियां सामने आने लगी तो सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया। सीबीआई ने मौका देखकर उन्हे गिरफ्तार कर लिया। लेकिन विपक्ष सवाल उठाता है कि शीला के खिलाफ कोई कार्यवाई क्यों नहीं हुई ?

हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म होते ही पेट्रोल के दामों में पांच रुपये की बढ़ोत्तरी कर दी गयी। ज़ाहिर है विपक्ष के हाथ ओर मुद्दा आ गया। सारी विपक्षा दल सरकार को घेरने की कवायद कर रहे हैं। और सरकार के सहयोगी दल चाहकर भी कुछ नही कह रहे हैं लेकिन अपने प्रभाव वाले इलाकों में उन्हे लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने दिल्ली में कई जगहों पर इस बढोत्तरी के खिलाफ ज़ोरदार प्रदर्शन किये। तो कांग्रेस कैसे चुप रहती उन्होंने ने भाजपा को पीछे छोड़ते हुये एमसीडी टोल टैक्स बढ़ोत्तरी को मुद्दा बना लिया और भाजपा को जवाब देते हुये दिल्ली के 140 स्थानों पर धरना दे दिया। इसके पीछे वजह ये है कि एमसीड़ी पर भाजपा का कब्ज़ा है और निगम चुनाव सर पर हैं।

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश मे चल रहा भूमि अधिग्रहण का बवाल किसी से छिपा नहीं है। सूबे की मायावती सरकार ने ताज एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे बनाने के लिये अपने चहेते एक बड़े बिल्ड़र को ठेका दे दिया। सालों से कई गांवों की ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। जो किसान प्यार से मान गये तो ठीक नही तो सरकार ने लाठी गोली चलाकर ज़मीन हथिया ली और कोड़ियों के भाव मुआवज़ा देकर इतिश्री कर ली। लेकिन जब मामला दिल्ली से लगे ग्रेटर नोएड़ा पंहुचा तो किसान अपनी ज़मीन कौड़ियों के भाव देने को राज़ी नही हुये। इसी बात का फ़ायदा उठाने के लिये सियासी दल मौदान में कूद पड़े। मामले पर बवाल शुरु हो गया। गोली चली किसान मरे, जवान मरे। लेकिन माया सरकार नहीं मानी।

अब सारे राजनीतिक दल रोज़ कोई ना कोई जुगत लगा रहे हैं कि इस मुद्दे को कैसे भुनाया जाये। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने जुगत लगा भी ली और पूरे मसले को अपना बना लिया। धरना दे दिया। गिरफ्तारी का तमाशा हुआ। माया सरकार को पसीना आ गया कि आखिर ये इस मुद्दे को कैसे भुनाने में कामयाब हो सकते हैं। उन्होंने दूसरी पार्टियों के नेताओं पर ग्रेटर नोएड़ा में घुसने पर ही पाबंदी लगा दी। हवाला दिया कानून व्यव्स्था और शान्ति व्यवस्था का। लेकिन राहुल भी कम नहीं पीड़ित किसानों को लेकर प्रधानमंत्री से मुलाकात करने पंहुच गये। मायावती ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया।

कर्नाटक का नाटक भी खूब चल रहा है। भाजपा और कांग्रेस आमने सामने हैं। भाजपा राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग कर रही है। और कांग्रेस कर्नाटक सरकार से इस्तीफा मांग रही है। सियासी गलियारों मे पिछले दो दिन से ये मामला छाया हुआ है। 11 अशोक रोड हो या फिर 24 अकबर रोड दोनों ही जगह सियासी रणनीतिकार अपने अपने जुगाड़ मे लगे हुये हैं। कभी प्रधानमंत्री के निवास पर बैठक हो रही है तो कभी एनडीए नेताओं के निवास पर मंथन। बस यही सब चल रहा है और चलता रहेगा। क्योंकि जनता जब वोट डालती है तब वो नहीं देखती कि उन्होंने ए.राजा को क्यों चुना या सुरेश कलमाड़ी को वोट क्यों दिया।

सियासी पार्टियों के ये सारे धरने, प्रदर्शन और जाम किसके लिये ? नेता कहते हैं कि जनता की समस्याओँ के समाधान के लिये ही ये सब किया जाता है। लेकिन इन सब गतिविधियों से परेशानी जनता को ही होती। रोज़-रोज़ के जाम, धरना और प्रदर्शन से आम जनजीवन पूरी तरह से प्रभावित होता है। लेकिन सियासी आक़ाओं को इससे कोई सरोकार नहीं उन्हें तो किसी भी हालत में अपने मक़सद को पूरा करना है। बस ये सारे मज़ंर देखकर यही लगता है कि सरकारें और विपक्ष सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। कभी तुम और कभी हम... की नीति अपना कर राजनीतिक दल हमें छलते दिख रहे हैं और आने वाले चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।

Monday, May 16, 2011

सियासत के बदलते रंग, यूपीए और एनडीए की कवायद

हाल ही मे पांच राज्यो मे हुये विधानसभा चुनावों के बाद अब देश की सियासत मे बदलाव के आसार दिख रहे हैं। इन बदलावों का अन्दाज़ा कुछ राज्यों के सियासी हालात देखकर लगाया जा सकता है। पश्चिम बंगाल मे ममता बनर्जी की वो आंधी चली कि उन्होने वामदलों के पैरों तले से ज़मीन खींच ली। वहीं तमिलनाड़ु में भ्रष्टाचार और 2 जी मामले का खामियाज़ा करुणानिधि को भुगतना पड़ा।

असल कहानी तो चुनाव निपट जाने के बाद ही शुरु हुई। अब ख़बरे आ रही हैं कि देश की सत्तारुढ पार्टी कांग्रेस कई राज्यों मे उन क्षेत्रीय दलों से रिश्ते बेहतर करना चाहती है जो अपने राज्यों मे मजबूत दिखाई दे रहे हैं। यही हाल एनडीए का भी है। भाजपा के कई बड़े नेता इस कवायद मे जुट गये हैं। अगर ये कहा जाये कि ये सब 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र हो रहा है, तो गलत नही होगा। दिल्ली में ममता बनर्जी के साथ सोनिया गांधी की मुलाकात तो हो ही गयी है और गठबंधन भी पूरी तरह मज़बूत दिख रहा है। ख़बर ये भी आ रही है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तमिलनाड़ु की मुख्यमंत्री जयललिता को भी चाय का दावतनामा भेजा है। अगर ये बात सच है तो समझिये कि कोई सियासी दल बन रही है। आपको याद दिला दें कि 1999 मे जयललिता ने भी एक चाय पार्टी का दावतनामा सोनिया गांधी को दिया था और उसी के बाद केन्द्र की सरकार धाराशायी हो गयी थी।

इसी कवायद का नमूना जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह मे भी देखने को मिला। समारोह में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू और सीपीआई महासचिव एबी वर्धन भी मौजूद थे। हर तरफ यही अटकले लगाई जा रही हैं कि अम्मा की जीत का सेहरा बीजेपी भी अपने सर पर बांधना चाहती है। लेकिन कांग्रेस भी तमिलनाडू में अपनी गुणा भाग मे लगी हुई है। मतलब साफ है कि जयललिता को अब देश की दोनों बड़ी पार्टिंया अपने साथ जोड़ना चाहती हैं। ताकि तमिलनाडू में ये पार्टियां अपना चुनावी गठबंधन मजबूत कर सकें।

तमिलनाड़ु में कुछ ही समय पहले जब डीएमके और कांग्रेस के बीच रिश्तों मे खटास आने लगी तो जयललिता ने सोनिया गांधी को एआईएडीएमके के साथ तमिलनाडु में हाथ मिलाने का ऑफर दिया था। लेकिन कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन का धर्म निभाते हुये उस वक्त उस ऑफर का कोई माकूल जवाब नही दिया। लेकिन अब कांग्रेस कहीं न कहीं एआईएडीएमके के साथ सियासी दोस्ती का मन बना रही है। और सोनिया के बुलावे को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

दरअसल देश के बड़े राज्य ही केन्द्र की सरकार बनाने और गिराने में अहम भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि देश के दोनों सियासी गठबंधन यूपीए और एनडीए सभी बड़े राज्यों की राननीतिक पार्टियों के साथ सम्भावनाऐं तलाश रहे हैं। उसी का नतीजा है कि भारतीय जनता पार्टी भी इस काम मे जुट गयी है। पार्टी ने जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में अपने फॉयर ब्राण़्ड नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजा। ताकि ताल्लुकात मज़बूत किये जा सकें। यहां तक राज्य की भाजपा इकाई जयललिता की जीत का श्रेय भी अपने खाते मे डालती नज़र आ रही है। हालाकि जयललिता की पार्टी ने बहुमत हासिल किया है। सीपीएम के वरिष्ठ नेता एबी वर्धन की मौजदूगी भी लोगों के लिये चर्चा का विषय बनी। हमारे देश में लोग राजनीतिक मुलाकातों में सम्भावनाऐं तो तलाशते ही हैं। कुछ ऐसा ही यहां भी देखने को मिला।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तो हर मुद्दे पर सारे विपक्षी दल एक सुर में मायावती सरकार पर निशाना साध रहे हैं। ग्रेटर नोएड़ा मे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चले आन्दोलन ने इस बात को साबित कर दिया कि यहां हर कोई अपनी सियासी रोटियां सेकना चाहता है। लेकिन कामयाबी मिली केवल राहुल गांधी को। कांग्रेस ने जी जान से राहुल के धरने और गिरफ्तारी का बखान किया ताकि प्रदेश मे जनता की सहानुभूति मिल सके। भाजपा भी कम नही रही उन्होने भी माया सरकार को निशाना साधने की जी तोड़ कोशिश की।

हकीकत तो ये है कि यहां पर्दे के पीछे दोनों ही गठबंधन बसपा को छोड़कर उत्तर प्रदेश के सभी छोटे बड़े दलों से तालमेल करने की कवायद मे लगे हुये हैं। यही नही कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी दिग्विजय सिंह तो खासकर मुस्लिम वोटों को ध्यान मे रखकर बयानबाज़ी करते हैं। ताकि वो गैरकांग्रेसी मुस्लिम वोटों मे सेंधमारी कर सकें। यूपीए और एनडीए की निगाहें 2012 में यूपी मे होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी लगी हुई हैं। यही वजह है कि एनडीए के संयोजक शरद यादव हाल ही मे लखनऊ के एक कार्यक्रम में माया सरकार को भला बुरा कह कर गये। यहां तक कि उन्होने ये कह दिया कि यूपी में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज़ ही नही है।

सियासत में कब क्या हो जाये कुछ कहा नही जा सकता। 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में कांग्रेस ने अपने सहयोगी डीएमके के मंत्री ए.राजा को शहीद कर दिया। कनिमोझी भी इस मामले का शिकार हो गयी। रिश्तों मे भी खटास आयी लेकिन चुनाव तक गठबंधन का धर्म दोनों ही पार्टियों ने निभाया। हालाकि तमिलनाड़ु के चुनावी नतीजे आने के बाद तस्वीर बदलती लग रही है। यही कहानी सभी राज्यों की है जहां गैरकांग्रेसी सरकारें हैं।

अब दोनों गठबंधन केवल इस बात की फीक्र मे जुटे हैं कि आखिर राज्यों मे किस तरह से अपना जनाधार बढाया जाये या फिर किन दलों के साथ मिलकर अपनी सियासी दाल पकायी जाऐ। पेट्रोल के बढ़े दामों ने हालाकि यूपीए के लिये परेशानी खड़ी कर दी है। हालाकि एनडीए समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने इस वृद्धि के खिलाफ पूरे देश मे आन्दोलन शुरु कर दिया है। लेकिन भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी यूपीए सरकार ने बड़ी बड़ी दिक्कतों से सामना किया है तो ये विरोध प्रदर्शन तो छोटी बातें हैं। यूपीए सरकार इससे बचने के लिये भी कोई ना कोई रास्ता ज़रुर निकाल लेगी।

Sunday, May 15, 2011

इराक का दर्द है “द लॉस्ट सेल्यूट”


इराकी पत्रकार मुंतज़िर अल ज़ैदी का जूता आज तक लोग नही भूले हैं। दरअसल वो जूता इतना खास बन गया था कि दुनिया के कौने कौने मे उस जूते के चर्चे आम हो गये। इराकी जनता के गुस्से का इज़हार करने के लिये अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश पर फेंका गया वो जूता भारत मे भी कई लोगों के लिये प्रेरणा बन गया।

पूरी दुनिया के लोग आज तक ये जानने को उत्सुक रहते हैं कि आखिर मुंतज़िर अल ज़ैदी को जूता फेंकने की ज़रुरत क्यों पड़ी? इसी बात को ध्यान मे रखकर जाने-माने फिल्म निर्माता निर्देशक महेश भट्ट ने इस संवेदनशील विषय को लोगों के सामने रखने के लिये रंगमंच की दुनिया में कदम रख दिये।

महेश भट्ट ने मुंतज़िर अल ज़ैदी की किताब द लॉस्ट सेल्यूट टू प्रेसीडेन्ट बुश पर आधारित एक नाटक की रचना कर डाली। शनिवार और रविवार की शाम राजधानी दिल्ली के श्रीराम सेन्टर में महेश भट्ट के नाटक द लॉस्ट सेल्यूट का मंचन किया गया। नाटक मे दर्शाया गया कि किस तरह से अमरीका ने शान्ति के नाम पर छोटे से मगर सम्पन्न राष्ट्र इराक को बर्बाद किया। किस तरह से आंतक और जैविक हथियारों के बहाने बगदाद शहर पर आग बरसाई गयी। किस तरह से अमरीकी सेना ने मासूम बच्चों और औरतों पर कहर बरपाया। यहां तक कि इराक में अस्पतालों को जंग के दौरान बमों के हवाले कर दिया गया। ये नाटक उस आम आदमी की कहानी है जो अपनी आँखों से अपने घर, शहर और वतन की बर्बादी देखता है और जब उसकी हिम्मत जवाब दे जाती है तो वो कुछ कर गुज़रने की ठान लेता है। दरअसल ये नाटक अमरीका की तानाशाही को लोगों के सामने रखता है जो किसी भी मुल्क पर किसी भी बहाने से हमला करने की फिराक मे रहता है। या फिर ये कहें कि दुनिया भर के मुल्कों को डराने की कोशिश करता रहता है। ताकि वो अपनी जायज़ और नाजायज़ नीतियों को दुनिया पर थोप सके।

अस्मिता थियेटर ग्रुप के कलाकारों ने करीब एक घण्टे की इस प्रस्तुति में दर्शकों के सामने मुंतज़िर अल ज़ैदी की पूरी कहानी बंया की। अभिनय की अगर बात की जाये तो नाटक का मुख्य किरदार महेश भट्ट की अगली फिल्म में बतौर नायक एन्ट्री करने वाले इमरान जाहिद ने अदा किया। पूरे नाटक की जान मुंतज़िर अल ज़ैदी का ये किरदार ही था। लेकिन इमरान जाहिद यहां अपने अभिनय की छाप नही छोड़ पाये। नाटक मे कई जगहों पर अन्य किरदार इमरान पर हावी दिखाई दिये। आवाज़ और अभिनय के मामले में इमरान अपने किरदार मे आत्म विश्वास भरने मे नाकाम रहे तो नाटक के सूत्रधार की शक्ल मे विरेन बसोया ने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया। जार्ज वी बुश का किरदार निभाने वाले ईश्वाक सिंह ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया। इन दोनों की संवाद अदायगी काबिल-ए-तारीफ थी। शिल्पी मारवाह ने अपने छोटे पर सशक्त किरदार को जीवंत बनाने का सफल प्रयास किया। इसके अलावा राहुल खन्ना, हिमांशु, सूरज सिंह, गौरव मिश्रा, पंकज दत्ता, शिव चौहान, रंजीत चौहान और मलय गर्ग ने  संवाददाताओं की भूमिका मे अपनी आवाज़ को दूर तक पंहुचाया।

नाटक का संगीत और गायन पक्ष कमज़ोर दिखाई दिया। जिसकी ज़िम्मेदारी संगीता गौर को दी गयी थी। पार्श्व संगीत की कमी तो नाटक में शुरु से ही दिख रही थी जबकि पार्श्व संगीत के लिये नाटक मे काफी गुंजाइश थी। कोरस ने गीतों के साथ कोई न्याय नही किया। यहां तक अभिनेताओं और कोरस के बीच तालमेल की कमी लगातार दर्शकों को खलती रही। कई जगहों पर गीतों मे कोरस खुद ही भटक गया। यहां तक फैज़ अहमद, साहिर लुधियानवी और हबीब जलीब के जनगीत दर्शकों को समझ मे ही नही आये।

नाटक के निर्देशक अरविन्द गौर लगातार कई सालों से रंगमंच कर रहे हैं। अरविन्द सामाजिक और रानीतिक नाटकों के लिये जाने जाते हैं। इसलिये उनके निर्देशन मे इस नाटक से उम्मीदें ज़्यादा थी। एक माह की रिहर्सल के बाद भी वो मुख्य किरदार निभाने वाले इमरान ज़ाहिद को पूरी तरह तैयार नही कर पाये। जबकि अन्य किरदार दर्शकों पर छाप छोड़ने मे कामयाब रहे।

नाटक की स्क्रिप्ट और संवाद दर्शकों को पसन्द आये। लखनऊ के राजेश कुमार  मुंतज़िर अल ज़ैदी की किताब से ली गयी कहानी को नाटक बनाने मे सफल दिखाई दिये। मैकअप पक्ष को श्रीकान्त वर्मा ने संवारा। नाटक मे लाइटिंग पक्ष भी अच्छा रहा।

मंचन के दौरान खासतौर पर इराकी टीवी पत्रकार मुंतज़िर अल ज़ैदी दिल्ली आये थे। उन्होने नाटक देखने के बाद कहा कि इस नाटक को देखकर उनकी वो सारी यादें ताज़ा हो गयी जो उनके साथ गुज़रा। उन्होने गांधी जी की सराहना करते हुये कहा कि ये देश बहुत सौभाग्यशाली है क्योंकि गांधी जी यहां रहा करते थे। जिन्होने उन्हे भी सच के लिये लड़ने की प्रेरणा दी।

नाटक के निर्माता महेश भट्ट ने कहा कि हम सभी को अन्याय के खिलाफ चुप रहने के बजाय आवाज़ उठानी चाहिये। जब तक हम आवाज़ बुलन्द नही करेगें तब तक हमारी सुनवाई नही होगी। सब साथ आईये और अपने हक के लिये, सच के लिये आवाज़ बुलन्द किजीये।

इस दौरान अभिनेत्री पूजा भट्ट, सांसद जया प्रदा, अभिनेता डीनो मारियो, सन्दीप कपूर आदि मौजूद रहे।