Saturday, August 31, 2013

हमारे देश में ये कैसा कानून....?

हमारे देश की सर्वोच्च अदालत भले ही ये कहती हो कि बलात्कार और यौन हिंसा जैसे संगीन मामले के आरोपी को तुरन्त गिरफ्तार किया जाना चाहिये लेकिन आसाराम की गिरफ्तारी में की जा रही सरकारी लापरवाही ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हमारे देश का कानून वाकई दो तरह से काम करता है। इसका आचरण आम आदमी के लिये अलग है और खास आदमी के लिये अलग.... अगर ऐसा ना होता तो बलात्कार और यौन हमले का आरोपी बाबा सलाखों के पीछे होता। यहां तो कानून के रखवालों ने ही उस बाबा को छिप जाने का मौका दे दिया।

Tuesday, August 27, 2013

आगरा में पुलिस वाले लूटेरों से सावधान...!

सावधान.....!
अगर आप देर रात आगरा शहर में कहीं आ-जा रहे हैं और आप अकेले हैं तो आगरा पुलिस के बहादुर जवान आपको तलाशी के नाम पर लूट सकते हैं। अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाला एतिहासिक शहर आगरा.. अब कुछ पुलिस वालों की करतूतों से बदनाम हो रहा है। शहर में चीता मोबाइल का गठन इसलिये किया गया था कि पुलिस किसी भी घटना स्थल या शिकायत पर तुरंत पहुंच जाये। इस चीता मोबाइल में बाइक पर दो हथियारबंद पुलिस वाले सवार रहते हैं। जिन्हे वायरलैस रेडियो भी दिया जाता है। लेकिन आज कल चीता मोबाइल वाले जनता की रक्षा नही बल्कि उनसे लूट करने पर आमदा हैं। इस तरह की शिकायतें आये दिन आ रही हैं।
हाल ही में शमशाबाद रोड़ की एक नई कॉलोनी में रहने वाले ब्रजेश गर्ग अपने किसी काम से ग्वालियर गये थे। रविवार की देर रात वो ट्रेन से आगरा कैन्ट पहुंचे। वहां स्टैण्ड पर खड़ी अपनी बाइक लेकर वो शमशाबाद रोड़ जाने के निकल गये। रात के लगभग दो बजे जब वो माल रोड़ से गुज़र रहे थे, तभी एएसआई ऑफिस के सामने चीता मोबाइल सवार दो पुलिस वालों ने उन्हे रोक लिया और उन पर रोब झाड़ते हुये बाइक के कागज़ और उनका ड्राइविंग लाइसेंस चैक किया। उसके बाद दोनों पुलिस वालों ने तलाशी के नाम पर उनकी जेब में रखे 2100 रुपये और उनका मोबाइल निकाल लिया। मोबाइल को देखने के बाद वो तो वापस कर दिया लेकिन रुपये उन्होने अपने वापस रख लिये। जब ब्रजेश गर्ग ने रुपये वापस मांगे। तो उन्होने गर्ग साहब को चोरी के मामले में फंसाने के नाम पर डराना शुरु कर दिया। 42 साल के ब्रजेश गर्ग इतना घबरा गये कि पुलिस वालों की धमकी सुनकर चुपचाप वहां से निकल गये। आज ब्रजेश गर्ग एक कार्यक्रम में मुझे मिले और उन्होने मुझे पूरी आपबीती सुनाई। मैने कहा कि आपने सुबह एसएसपी या एसपी सिटी से शिकायत क्यों नही कि तो उनका जवाब था कि चीता मोबाइल सवार पुलिस वाले उन्हे किसी भी झूठे मामले में फंसा देंगे क्योंकि उन्होने मेरा नाम-पता भी ले लिया था।

ब्रजेश गर्ग अकेले पीड़ित नही हैं इससे पहले भगवान टॉकीज़ के पास एक एलपीजी एजेंसी पर काम करने वाला बॉबी भी चीता मोबाइल वालों की लूट का शिकार हुआ था। यहां तक कि शहर में कई जगहों पर अवैध धंधे भी इन्ही चीता मोबाइल वालों के संरक्षण में चल रहे हैं। इन्हे कई सफेद पोशों और स्थानीय पत्रकारों का संरक्षण भी मिला होता है। यही वजह है कि इनके खिलाफ कार्यवाही करने में अधिकारी ढीले पड़ जाते हैं। लेकिन अगर इन पुलिस वालों की लूटमार यूँ जारी रही तो शहर की आम जनता का विश्वास पुलिस से उठ जायेगा। यूपी सरकार और पुलिस महकमें की छवि खराब करने वाले ये लोग वर्दी वाले गुण्डे बनकर ही लूट करते रहेंगे।

Friday, August 16, 2013

अमेरिकी भैंसों की ख़बर हमारे चैनल्स पर...

हमारे देश के दो प्रमुख हिन्दी समाचार चैनल अमेरिका के एक शहर की ख़बर दिखा रहे थे। ख़बर ये थी कि अमेरिका के एक स्टेट हाइवे पर दर्जनों भैंसों के आ जाने से वहां का ट्रेफिक करीब आधा घंटा रुका रहा। कमाल तो ये है कि हमारे देश का शायद ही कोई ऐसा नेशनल हाइवे या स्टेट हाइवे हो जिस पर रोज़ाना भैंस या अन्य जानवर ना मिलते हो। यही नही उनकी वजह से आये दिन कई सड़क दुर्घटनाऐं भी होती रहती हैं। लेकिन इस तरह के समाचार हमारे नेशनल न्यूज़ चैनल्स पर यदा-कदा दिखाई देते हैं। आगरा में विश्व धरोहर स्मारक ताजमहल के पूर्वी गेट के सामने से तो सुबह शाम सैंकड़ों भैंसे निकलती हैं और विदेशी पर्यटक जमकर उनकी तस्वीरें लेते हैं और ये मंज़र देख कर हैरान होते हैं लेकिन अस बात की सुध किसी को नही है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लेकर ताज महल के आस-पास से तबेले हटवाये और ताजमहल के पीछे यमुना में भैंसों के नहाने पर रोक भी लगाई लेकिन उसके बावजूद ये सिलसिला आज तक जारी है। आगरा ज़िला प्रशासन की लापरवाही से विदेशी पर्यटकों के सामने शहर की छवि तो बिगड़ती ही है साथ ही कई बार यहां हादसे भी हो जाते हैं। लेकिन हमारे न्यूज़ चैनल्स ऐसी ख़बरों पर ध्यान नही देते।

Friday, August 2, 2013

शहरी समाज में भी लड़कियों के साथ होता है भेदभाव

भारत के शहरी समाज में आज कई ऐसे रुढीवादी उदहारण देखने को मिलते हैं जो हमें वर्तमान सामाजिक परिवेश के बारे में नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर देते हैं। दो दिन पहले एक कार्यक्रम में मुझे एक डिग्री कॉलेज की छात्राओं को पत्रकारिता और महिला शिक्षा जैसे विषय पर सम्बोधित करने का मौका मिला। पिछले कई सालों से लड़कियों और बच्चों की शिक्षा को लेकर काम कर रहा हूँ तो आदत में आ गया है कि छात्राओं और बच्चों से अक्सर उनकी परेशानियां भी पूछ लेता हूँ। विषय पर अपनी बात कहने के बाद बी.कॉम प्रथम वर्ष की एक छात्रा ने मुझे बताया कि वो शहर के ही एक इलाके में रहती है। जब वो इंटर कर रही थी तो एक लड़का उसका पीछा करने लगा। वो ऑटो से कॉलेज जाती थी तो वो लड़का रोज़ाना साइकिल से उसका पीछा करता था। कॉलेज से लौट आने के बाद उसके घर के चक्कर लगाया करता था। दस दिन बीत जाने पर उस छात्रा ने ये बात अपनी एक सहेली से कही। सहेली ने उस छात्रा को सलाह दी कि ये बात अपने घर वालों को बता दे। सहेली की बात मानकर उसने लड़के के बारे में अपने घर वालों को सारी बात बता दी। नतीजा ये हुआ कि घरवालों ने उस लड़की के कॉलेज जाने पर रोक लगा दी। उसका घर से निकलना, छत पर जाना और घर के गेट तक पर खड़ा होना तक बंद कर दिया गया। उस छात्रा के परिवार ने पीछा करने वाले लडके के खिलाफ कुछ करने के बजाय उस छात्रा को ही घर में बंद रहने के लिये मजबूर कर दिया। बड़ी मुश्किल से दो माह बाद उसे कॉलेज के इम्तिहान की वजह से घर से बाहर अपने माता-पिता के साथ बाहर जाने की इजाज़त दी गयी। उस छात्रा ने बड़ी मासूमियत से मुझसे ही सवाल किया कि सर आप बतायें कि क्या मैने अपने घरवालों को उस लड़के के बारे में बताकर ग़लत किया था? जो मुझे ही उसकी सज़ा मिली। उस छात्रा की बात सुनकर मैं सोच में पड़ गया कि वाकई अभी भी एक पढ़ा लिखा परिवार अपने घर की बेटी के साथ ऐसा बर्ताव कैसे कर सकता है। मुछे भी उसकी बात ने सोचने पर मजबूर कर दिया। वाकई इस मामले में उस लड़की की ना तो कोई ग़लती थी और ना ही उसने अपने घरवालों से कुछ छिपाया। फिर भी एक अनजान लड़के की हरकत से उस लड़की के दिल में एक घृणा का भाव पैदा हो गया जो लड़कों को लेकर भी थी और परिवार के प्रति भी। मैने अपने स्तर पर उस लड़की को बेहतर जवाब देने कि कोशिश की। लेकिन ताजुब्ब होता कि आधुनिकता के इस दौर में भी घरवाले बेटियों के साथ ही ऐसा क्यों करते हैं? उस लड़की का सवाल ग़लत नही था। हो सकता है कि अभी भी वो इस तरह की कुछ परेशानियों का सामना करती हो। मैने उसे तो हौंसला दे दिया लेकिन ऐसी ही कई लड़कियां हमारे समाज में और भी हैं उनका क्या?

-          -परवेज़ सागर