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Tuesday, May 17, 2011

सियासत है एक जंग, कभी तुम कभी हम

इन दिनों गर्मी की तपिश जैसे जैसे बढ़ रही है। लगता है वैसे ही देश की सियासत भी गर्माती जा रही है। हाल ही पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव निपटे हैं तो लग रहा था कि अब सभी पार्टियों के नेता आराम करेंगे लेकिन ये क्या यहां तो हालात ओर गर्म होते जा रहे हैं लग रहा जैसे देश मे कल ही लोकसभा चुनाव होने वाले हों।

देश की सभी राजनीतिक पार्टियां बस जैसे मुद्दों की ताक में बैठी हैं मौका मिलते ही टूट पड़ रही हैं। हक़ीक़त तो ये है कि ये सारी क़वायद केवल सियासी उल्लू सीधा करने की है। हर पार्टी और नेता बस जनता को ये दिखाने की कोशिश में लगें हैं कि बस हम ही हैं जनता के सच्चे प्रतिनिधि जो आपकी आवाज़ उठा रहे हैं। मामला कोई भी हो बस उसे भुनाने के लिये नेताओं और राजनीतिक दलों में एक होड़ से मची हुई है। सभी राजनीतिक दल बस सियासी कुश्ती लड़ते दिख रहे हैं। कभी यूपीए ऊपर और कभी एनडीए। कई बार लगता है जैसे सरकार और विपक्ष के बीच कोई सांठगांठ हो। बस जनता को उलझाये रखो और अपना काम चलाये रखो।

केन्द्र की यूपीए-2 सरकार अपने कारिन्दों की वजह से लगातार चर्चाओं मे बनी हई है। आए दिन नये-नए घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। रोज़ नये किस्से रोज़ नई कहानी... फिर भी सरकार चल रही है। लेकिन विपक्षी पार्टियां भी कम नहीं मौका पाते है सरकार पर हमला बोलने से नही चूकती। पहले कृषि मंत्री शरद पवार के चर्चे रहे। उनको लेकर विपक्षी पार्टियों ने खूब हो हल्ला किया लेकिन नतीजा क्या निकला। कुछ भी नहीं। वो अभी भी अपने काम मशगूल हैं। हालांकि बाद में 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले का बवाल इतना बढ़ा कि सरकार को अपने सहयोगी दल के एक मंत्री को हटाना ही नहीं बल्कि जेल भेजना पड़ा। यहां तक कि देश के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री का तमगा पा चुके मनमोहन सिंह को देश से माफी मांगनी पड़ी। खैर माफी तो प्रधानमंत्री कई बार मांग चुके हैं और ना जाने कितनी बार और मांगेंगे। सरकार के कारनामे जो ऐसे हैं। लेकिन सरकार चलाना आसान नहीं होता। इसलिये सरकार भी मौक़ा नही छोड़ती। वक्त बेवक्त पिवक्ष पर पलटवार करती रहती है। लेकिन मुद्दों की तलाश तो राजधानी के सभी नेताओं को रहती है।

देश की राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो कांग्रेस और भाजपा के बीच की सियासी लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है। पहले कॉमनवेल्थ और भ्रष्टाचार के मुद्दे ने शीला सरकार को ख़ासा परेशान किया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुये। भाजपा के बड़े नेताओं ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर शिरकत की। जैसे तैसे मामला शान्त हुआ तो मंहगाई का मुद्दा सरकार के लिये गले की फांस बन गया। देशभर मे केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का दौर चला लेकिन हुआ कुछ नहीं। कॉमनवेल्थ खेल आयोजन कमेटी के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की कारगुज़ारियां सामने आने लगी तो सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया। सीबीआई ने मौका देखकर उन्हे गिरफ्तार कर लिया। लेकिन विपक्ष सवाल उठाता है कि शीला के खिलाफ कोई कार्यवाई क्यों नहीं हुई ?

हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म होते ही पेट्रोल के दामों में पांच रुपये की बढ़ोत्तरी कर दी गयी। ज़ाहिर है विपक्ष के हाथ ओर मुद्दा आ गया। सारी विपक्षा दल सरकार को घेरने की कवायद कर रहे हैं। और सरकार के सहयोगी दल चाहकर भी कुछ नही कह रहे हैं लेकिन अपने प्रभाव वाले इलाकों में उन्हे लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने दिल्ली में कई जगहों पर इस बढोत्तरी के खिलाफ ज़ोरदार प्रदर्शन किये। तो कांग्रेस कैसे चुप रहती उन्होंने ने भाजपा को पीछे छोड़ते हुये एमसीडी टोल टैक्स बढ़ोत्तरी को मुद्दा बना लिया और भाजपा को जवाब देते हुये दिल्ली के 140 स्थानों पर धरना दे दिया। इसके पीछे वजह ये है कि एमसीड़ी पर भाजपा का कब्ज़ा है और निगम चुनाव सर पर हैं।

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश मे चल रहा भूमि अधिग्रहण का बवाल किसी से छिपा नहीं है। सूबे की मायावती सरकार ने ताज एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे बनाने के लिये अपने चहेते एक बड़े बिल्ड़र को ठेका दे दिया। सालों से कई गांवों की ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। जो किसान प्यार से मान गये तो ठीक नही तो सरकार ने लाठी गोली चलाकर ज़मीन हथिया ली और कोड़ियों के भाव मुआवज़ा देकर इतिश्री कर ली। लेकिन जब मामला दिल्ली से लगे ग्रेटर नोएड़ा पंहुचा तो किसान अपनी ज़मीन कौड़ियों के भाव देने को राज़ी नही हुये। इसी बात का फ़ायदा उठाने के लिये सियासी दल मौदान में कूद पड़े। मामले पर बवाल शुरु हो गया। गोली चली किसान मरे, जवान मरे। लेकिन माया सरकार नहीं मानी।

अब सारे राजनीतिक दल रोज़ कोई ना कोई जुगत लगा रहे हैं कि इस मुद्दे को कैसे भुनाया जाये। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने जुगत लगा भी ली और पूरे मसले को अपना बना लिया। धरना दे दिया। गिरफ्तारी का तमाशा हुआ। माया सरकार को पसीना आ गया कि आखिर ये इस मुद्दे को कैसे भुनाने में कामयाब हो सकते हैं। उन्होंने दूसरी पार्टियों के नेताओं पर ग्रेटर नोएड़ा में घुसने पर ही पाबंदी लगा दी। हवाला दिया कानून व्यव्स्था और शान्ति व्यवस्था का। लेकिन राहुल भी कम नहीं पीड़ित किसानों को लेकर प्रधानमंत्री से मुलाकात करने पंहुच गये। मायावती ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया।

कर्नाटक का नाटक भी खूब चल रहा है। भाजपा और कांग्रेस आमने सामने हैं। भाजपा राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग कर रही है। और कांग्रेस कर्नाटक सरकार से इस्तीफा मांग रही है। सियासी गलियारों मे पिछले दो दिन से ये मामला छाया हुआ है। 11 अशोक रोड हो या फिर 24 अकबर रोड दोनों ही जगह सियासी रणनीतिकार अपने अपने जुगाड़ मे लगे हुये हैं। कभी प्रधानमंत्री के निवास पर बैठक हो रही है तो कभी एनडीए नेताओं के निवास पर मंथन। बस यही सब चल रहा है और चलता रहेगा। क्योंकि जनता जब वोट डालती है तब वो नहीं देखती कि उन्होंने ए.राजा को क्यों चुना या सुरेश कलमाड़ी को वोट क्यों दिया।

सियासी पार्टियों के ये सारे धरने, प्रदर्शन और जाम किसके लिये ? नेता कहते हैं कि जनता की समस्याओँ के समाधान के लिये ही ये सब किया जाता है। लेकिन इन सब गतिविधियों से परेशानी जनता को ही होती। रोज़-रोज़ के जाम, धरना और प्रदर्शन से आम जनजीवन पूरी तरह से प्रभावित होता है। लेकिन सियासी आक़ाओं को इससे कोई सरोकार नहीं उन्हें तो किसी भी हालत में अपने मक़सद को पूरा करना है। बस ये सारे मज़ंर देखकर यही लगता है कि सरकारें और विपक्ष सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। कभी तुम और कभी हम... की नीति अपना कर राजनीतिक दल हमें छलते दिख रहे हैं और आने वाले चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।