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Monday, May 16, 2011

सियासत के बदलते रंग, यूपीए और एनडीए की कवायद

हाल ही मे पांच राज्यो मे हुये विधानसभा चुनावों के बाद अब देश की सियासत मे बदलाव के आसार दिख रहे हैं। इन बदलावों का अन्दाज़ा कुछ राज्यों के सियासी हालात देखकर लगाया जा सकता है। पश्चिम बंगाल मे ममता बनर्जी की वो आंधी चली कि उन्होने वामदलों के पैरों तले से ज़मीन खींच ली। वहीं तमिलनाड़ु में भ्रष्टाचार और 2 जी मामले का खामियाज़ा करुणानिधि को भुगतना पड़ा।

असल कहानी तो चुनाव निपट जाने के बाद ही शुरु हुई। अब ख़बरे आ रही हैं कि देश की सत्तारुढ पार्टी कांग्रेस कई राज्यों मे उन क्षेत्रीय दलों से रिश्ते बेहतर करना चाहती है जो अपने राज्यों मे मजबूत दिखाई दे रहे हैं। यही हाल एनडीए का भी है। भाजपा के कई बड़े नेता इस कवायद मे जुट गये हैं। अगर ये कहा जाये कि ये सब 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र हो रहा है, तो गलत नही होगा। दिल्ली में ममता बनर्जी के साथ सोनिया गांधी की मुलाकात तो हो ही गयी है और गठबंधन भी पूरी तरह मज़बूत दिख रहा है। ख़बर ये भी आ रही है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तमिलनाड़ु की मुख्यमंत्री जयललिता को भी चाय का दावतनामा भेजा है। अगर ये बात सच है तो समझिये कि कोई सियासी दल बन रही है। आपको याद दिला दें कि 1999 मे जयललिता ने भी एक चाय पार्टी का दावतनामा सोनिया गांधी को दिया था और उसी के बाद केन्द्र की सरकार धाराशायी हो गयी थी।

इसी कवायद का नमूना जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह मे भी देखने को मिला। समारोह में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू और सीपीआई महासचिव एबी वर्धन भी मौजूद थे। हर तरफ यही अटकले लगाई जा रही हैं कि अम्मा की जीत का सेहरा बीजेपी भी अपने सर पर बांधना चाहती है। लेकिन कांग्रेस भी तमिलनाडू में अपनी गुणा भाग मे लगी हुई है। मतलब साफ है कि जयललिता को अब देश की दोनों बड़ी पार्टिंया अपने साथ जोड़ना चाहती हैं। ताकि तमिलनाडू में ये पार्टियां अपना चुनावी गठबंधन मजबूत कर सकें।

तमिलनाड़ु में कुछ ही समय पहले जब डीएमके और कांग्रेस के बीच रिश्तों मे खटास आने लगी तो जयललिता ने सोनिया गांधी को एआईएडीएमके के साथ तमिलनाडु में हाथ मिलाने का ऑफर दिया था। लेकिन कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन का धर्म निभाते हुये उस वक्त उस ऑफर का कोई माकूल जवाब नही दिया। लेकिन अब कांग्रेस कहीं न कहीं एआईएडीएमके के साथ सियासी दोस्ती का मन बना रही है। और सोनिया के बुलावे को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

दरअसल देश के बड़े राज्य ही केन्द्र की सरकार बनाने और गिराने में अहम भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि देश के दोनों सियासी गठबंधन यूपीए और एनडीए सभी बड़े राज्यों की राननीतिक पार्टियों के साथ सम्भावनाऐं तलाश रहे हैं। उसी का नतीजा है कि भारतीय जनता पार्टी भी इस काम मे जुट गयी है। पार्टी ने जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में अपने फॉयर ब्राण़्ड नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजा। ताकि ताल्लुकात मज़बूत किये जा सकें। यहां तक राज्य की भाजपा इकाई जयललिता की जीत का श्रेय भी अपने खाते मे डालती नज़र आ रही है। हालाकि जयललिता की पार्टी ने बहुमत हासिल किया है। सीपीएम के वरिष्ठ नेता एबी वर्धन की मौजदूगी भी लोगों के लिये चर्चा का विषय बनी। हमारे देश में लोग राजनीतिक मुलाकातों में सम्भावनाऐं तो तलाशते ही हैं। कुछ ऐसा ही यहां भी देखने को मिला।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तो हर मुद्दे पर सारे विपक्षी दल एक सुर में मायावती सरकार पर निशाना साध रहे हैं। ग्रेटर नोएड़ा मे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चले आन्दोलन ने इस बात को साबित कर दिया कि यहां हर कोई अपनी सियासी रोटियां सेकना चाहता है। लेकिन कामयाबी मिली केवल राहुल गांधी को। कांग्रेस ने जी जान से राहुल के धरने और गिरफ्तारी का बखान किया ताकि प्रदेश मे जनता की सहानुभूति मिल सके। भाजपा भी कम नही रही उन्होने भी माया सरकार को निशाना साधने की जी तोड़ कोशिश की।

हकीकत तो ये है कि यहां पर्दे के पीछे दोनों ही गठबंधन बसपा को छोड़कर उत्तर प्रदेश के सभी छोटे बड़े दलों से तालमेल करने की कवायद मे लगे हुये हैं। यही नही कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी दिग्विजय सिंह तो खासकर मुस्लिम वोटों को ध्यान मे रखकर बयानबाज़ी करते हैं। ताकि वो गैरकांग्रेसी मुस्लिम वोटों मे सेंधमारी कर सकें। यूपीए और एनडीए की निगाहें 2012 में यूपी मे होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी लगी हुई हैं। यही वजह है कि एनडीए के संयोजक शरद यादव हाल ही मे लखनऊ के एक कार्यक्रम में माया सरकार को भला बुरा कह कर गये। यहां तक कि उन्होने ये कह दिया कि यूपी में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज़ ही नही है।

सियासत में कब क्या हो जाये कुछ कहा नही जा सकता। 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में कांग्रेस ने अपने सहयोगी डीएमके के मंत्री ए.राजा को शहीद कर दिया। कनिमोझी भी इस मामले का शिकार हो गयी। रिश्तों मे भी खटास आयी लेकिन चुनाव तक गठबंधन का धर्म दोनों ही पार्टियों ने निभाया। हालाकि तमिलनाड़ु के चुनावी नतीजे आने के बाद तस्वीर बदलती लग रही है। यही कहानी सभी राज्यों की है जहां गैरकांग्रेसी सरकारें हैं।

अब दोनों गठबंधन केवल इस बात की फीक्र मे जुटे हैं कि आखिर राज्यों मे किस तरह से अपना जनाधार बढाया जाये या फिर किन दलों के साथ मिलकर अपनी सियासी दाल पकायी जाऐ। पेट्रोल के बढ़े दामों ने हालाकि यूपीए के लिये परेशानी खड़ी कर दी है। हालाकि एनडीए समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने इस वृद्धि के खिलाफ पूरे देश मे आन्दोलन शुरु कर दिया है। लेकिन भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी यूपीए सरकार ने बड़ी बड़ी दिक्कतों से सामना किया है तो ये विरोध प्रदर्शन तो छोटी बातें हैं। यूपीए सरकार इससे बचने के लिये भी कोई ना कोई रास्ता ज़रुर निकाल लेगी।