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Sunday, September 13, 2009

आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना


बस कि दुश्‍वार है हर इक काम का आसां होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना
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गिरिया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की,
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना
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वा-ए-दीवानगी-ए-शौक़ कि हर दम मुझको,
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना
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जलवा अज़_बस कि तक़ाज़ा-ए-निगाह करता है,
जौहर-ए-आईना भी चाहे है मिज़ग़ां होना
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इशरत-ए-क़त्लगाह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ,
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां होना