Friday, December 26, 2014

इतने खूंखार क्यों बने बोडो उग्रवादी?

परवेज़ सागर
असम के सोनितपुर और कोकराझार जिलों में हुए हमले के बाद केन्द्र सरकार ने सख्त तेवर दिखाये हैं. सेना ने असम पुलिस और सीएसएफ के साथ मिलकर प्रतिबंधित संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के खिलाफ ऑलऑउट अभियान शुरू किया है. यह संगठन पिछले कई सालों से असम में बोडो आदिवासी समुदाय के लिए एक अलग राज्य की मांग उठाता रहा है. केन्द्र ने साफ कर दिया है कि किसी भी स्तर पर उग्रवादियों के साथ बाच-चीत नहीं होगी.
सोनितपुर और कोकराझार में बच्चों और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. बोडो उग्रवादियों का ये ताबिलानी हमला पेशावर हमले की तरह ही भयानक साबित हुआ, जिसमें 65 से ज्यादा लोगों को अपनी ज़िन्दगी से हाथ धोना पड़ा. असम में ये मसला नया नहीं है. बांग्लादेश और भूटान की सीमा से लगे असम में सालों से जातीय हिंसा एक बड़ी परेशानी बनी हुई है. बोडो उग्रवादी यहां के गैर बोडो लोगों को निशाना बनाते रहे हैं.
असम राज्य की कुल आबादी 3 करोड़ से ज़्यादा है जिसमें तकरीबन 10 फीसदी बोडो जाति के हैं. दरअसल इस विवाद की जड़ बांग्लादेश से घुसपैठ कर यहां बसे मुसलमानों के साथ संघर्ष से जुड़ी है. इनकों यहां बसाने के पीछे कहीं ना कहीं तत्कालीन सरकारों के सियासी मकसद भी रहे. असम की कांग्रेस सरकारों पर आरोप लगता रहा कि वे वोट खातिर बांग्लादेशी मुसलमानों को यहां बसाती रही. पहले से सरकार विरोधी सोच रखने वाले बोडो आदिवासी इन्हें शरण दिए जाने से उग्र हो गए और फिर अलग राज्य की मांग के साथ शुरू हुआ कत्ल-ए-आम का दौर.
भारत सरकार ने इस विवाद के निपटारे के लिये असम में बोड़ो क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) की स्थापना की. जो वहां खुद से प्रशासनिक फैसले करती है लेकिन कानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की है. बोडो उग्रवादी बीटीसी से संतुष्ट नही हैं. इस मसले को और पेचीदा बनाया बोडो उग्रवादियों के खिलाफ खड़े हुए दो संगठनों ने. अलग बोडो राज्य की मांग के खिलाफ हैं गैर-बोडो सुरक्षा मंच और अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्र संघ. जब इन संगठनों के सदस्य बोडो उग्रवादियों के सामने आते हैं तो भी खूनखराबा होता है.
2012 में 100 से ज्यादा गैर-बोडो मारे गए और करीब 40 हज़ार लोगों को दूसरी जगहों पर जाकर शरण लेनी पड़ी. अब भारत सरकार ने बोडो उग्रवादी संगठन एनडीएफबी से निपटने की योजना पर काम तो शुरू किया है. लेकिन सवाल ये है कि क्या जवाबी कार्रवाई से इनके हौंसले पस्त होंगे? क्या सेना के सामने ये लोग हथियार डाल देंगे? क्या कुछ बोड़ो उग्रवादियों को मौत के घाट उतार देने से इस गंभीर समस्या को हल मुमकिन है? ऐसा लगता तो नही. क्योंकि बोडो उग्रवादियों ने भूटान और म्यांमार में अपने कैम्प स्थापित कर लिये हैं. यहीं से उन्हें एके-47 जैसे आधुनिक हथियार भी मिल रहे हैं. हालांकि सेना ने इन उग्रवादियों के खिलाफ शुरू किए अपने ताज़ा अभियान में चीन, भूटान और म्यांमार को भी शामिल किया है लेकिन देखना होगा कि यह मिशन कितना कारगर साबित होगा.
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