Thursday, June 25, 2009

ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं....



जी में आता है ये मुर्दा चांद तारे नोच लूं,

इस किनारे नोच लूं और उस किनारे नोच लूं।

एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूं,

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं....