आप सभी को जश्न-ए-आज़ादी मुबारक।
लेकिन....
अहम सवाल ये है कि क्या हम आज़ाद हैं ?
हमारे मुल्क ने 15 अगस्त 1947 को भले ही अंग्रेजों से आज़ादी हासिल कर ली थी
लेकिन आज के इस दौर में हम एक बार फिर से गुलाम होते जा रहे हैं। पश्चिमी सभ्यता
के गुलाम... भ्रष्टाचार के गुलाम... धर्म, वर्ग, बिरादरी और जातिवाद के गुलाम.......
क्या हमारे देश की आज़ादी के लिये खून बहाने वालों ने ये सब सोचकर ही अपना खून
बहाया था। मुल्क के लिये मौत को गले लगाने वाले धर्म, वर्ग, बिरादरी और जातिवाद से
ऊपर उठकर सिर्फ आज़ादी के लिये लड़ रहे थे। उन्होने ना तो कभी ऐसा सोचा था और ना
ही कभी ऐसी कल्पना की थी। लेकिन उसके बावजूद क्या हो रहा है देश में... क्या कोई
ऐसा आम आदमी है जो कहे कि हां मैं खुश हूँ। स्वतंत्रता दिवस पर हाथ में तिरंगा उठा
कर चलने वाले आम आदमी के हालात किसी से छिपे नही हैं। आज़ादी के साठ दशक पार हो
जाने के बाद भी भले ही सरकारी आंकड़ों और नेताओं के भाषणों में हमने तरक्की कर ली
हो लेकिन हकीकत ये है कि आज भी झंडा फहराने पर दो लड्डू पाकर जश्ने आज़ादी मनाने
वाला आम आदमी ज़ुल्म का शिकार है। चाहे सरकार हो या अफसर शाही हर जगह वही निशाना
बनता है। हर बार वही शोषण का शिकार बनता है। जब सुबह से शाम तक कई सरकारी दफ्तरों
में बूढ़े लाचार लोगों को अफसरों के दफ्तरों में पेंशन पाने के लिये चक्कर लगाते
देखता हूँ तो मन में सवाल आता है क्या कसूर है इनका ? सवाल तो और भी कई उठते हैं लेकिन आज़ादी पाने का
क्या अर्थ है वो यहां ज़्यादा ज़रुरी हो जाता है। सड़कों पर भीख मांगते बच्चें और
औरतें... रात में फुटपाथ पर सोते सैंकड़ों लोग। नौकरी के लिये मारे मारे घूमते
युवा। सब आज़ादी के मायनों पर सवाल से उठाते नज़र आते हैं। गुलाम भारत के बारे में
जितना पढ़ा और सुना है उसके आधार पर तो ऐसा लगता है कि कुछ बदला ही नही है। सब
वैसा ही है बस अंग्रेजों की जगह हमारे लोगों ने ले ली है। वरना सब कुछ वैसा ही है।
वही कानून... वही सिस्टम...... वही पुलिस... वैसे ही अत्याचार...... तो आम आदमी के
लिये क्या बदला ? समझना
ये होगा कि आज देश की आम जनता को मोबाइल, लैपटाप या टैब की नही बल्कि रोटी और
रोज़गार की ज़रुरत है।
आज़ादी के मायने सिर्फ अंग्रेजों का भाग जाना नही बल्कि देश की विकास था....
हर बेरोज़गार को रोज़गार था.... अत्याचारों से मुक्ति था.... समान अधिकार देने
वाला तंत्र था... भ्रष्टाचार मुक्त समाज था। लेकिन आज इस 15 अगस्त पर हम किस मोड़
पर खड़ें हैं ये सोचने वाली बात है। वरना अगले साल फिर 15 अगस्त आयेगा... हमारे
दिल में देशभक्ति का तूफान उठेगा... तिरंगा लहरायेगा... जश्न होगा और 16 अगस्त से
फिर हम अपने काम पर लग जायेंगे। यही सब जारी रहेगा...
और देश की आज़ादी के असली मायने फिर कहीं अंधेरों में खो जायेंगे।
हम यूँ ही सब सहकर जीते रहेंगे
और...... एक दिन मर जायेंगे।