वो रुला कर हंस ना पाया देर तक,
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक।
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक।
ना-अखलाक बेटे तो सर दर्द बने,
बेटियों ने सर दबाया देर तक।
गुनगुनाता जा रहा था एक फकीर,
धूप रहती है ना साया देर तक।
Sunday, September 6, 2009
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2 comments:
kyaa kahe ...........moun hai aapaki rachana padhakar .....
दिल को छू जाने वाली रचना है परवेज जी
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