Wednesday, August 26, 2009

सर उतार देतें हैं....


अमीर-ए-शहर की

मेहरबानियों पे ना जा,

ये सर का बोझ नही,

सर उतार देतें हैं

Sunday, August 23, 2009

ज़माना करवट बदल रहा है


तुम ना बदलो ज़माना बदल रहा है,

गुलाब पत्थर पर उग रहा है,

चराग़ आंधियों मे जल रहा है...

नये चरागों को हौंसला दो,

ज़माना करवट बदल रहा है।

Tuesday, August 4, 2009

ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो....


ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है, टपकेगा तो जम जायेगा

ख़ाक़-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इन्साफ़ पे या पा-ए-सलासल पे जमे

तेग़-ए-बेदाद पे या लाशा-ए-बिस्मिल पे जमे
ख़ून फिर ख़ून है, टपकेगा तो जम जायेगा