Monday, November 9, 2009
महंगाई को लेकर बवाल
मौहब्बत का शहर का आगरा आज दिन भर दहला रहा। बढती महंगाई के विरोध को लेकर शहर मे जो चिन्गारी दो दिन पहले भड़की थी। आज वो शोला बन गयी। शुरुआत शहर के जीवनी मण्डी चौराहे से हुई जहां स्थानीय लोगों महंगाई का विरोध जताने के लिये सड़को पर उतर आये। जाम लगा दिया गया। पुलिस ने समझाने की कोशिश की तो भीड़ ने उग्र होकर पथराव शुरु कर दिया। वाहनों मे आग लगा दी गयी। पुलिस को मजबूर होकर फायरिंग करनी पड़ी। भगदड़ और फायरिंग मे दर्जनों लोग जख्मी हो गये। दूसरी तरफ खन्दारी चौराहे पर हाइवे को महिलाओं ने जाम कर दिया। उनका हौंसला बढाने के लिये भाजपा के कार्यकर्ता भी आ गये। यहां भी हालात बेकाबू होते देख पुलिस को लॉठीचार्ज करना पड़ा। दोनों जगह घण्टो तनाव की स्थिति बनी रही। भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। लेकिन एक सवाल मेरे सामने है कि क्या ये विरोध यहीं खत्म हो जायेगा? मुझे लगता है कि ये शुरुआत है आज आगरा है तो कल दिल्ली के लोग भी महंगाई का विरोध करने को सड़कों पर आ सकते हैं... और परसों लखनऊ के। इसके पीछे बढती कीमतों पर सरकार का नियंत्रण खोना ही सबसे बड़ी वजह मुझे नजर आती है। विरोध करने वालों को तो गोली और लॉठी से रोका जा सकता है लेकिन उनके विचारों को मार पाना किसी सरकार के बस मे नही है। महंगाई का विरोध भी एक विचार बन गया है। और ये फैल रहा है जब लोग आगरा मे हुये बवाल की ख़बर देख या पढ रहें होगें तो ये विचार खुद-ब-खुद उनके मन मे आ सकता है। कहने का मतलब है कि ताकत का इस्तेमाल कर विरोध या लोगों को रोका जा सकता है। लेकिन परेशानी से उबरे मानसिक विरोध और विचार को रोकने का तरीका केवल एक है वो है कीमतों पर काबू पाना। कितनी मज़ाकिया बात लगती है रोज़ ये ख़बर पढना की महंगाई की दर कम हो रही है लेकिन हकीकत बिल्कुल उसके उलट है। दाल, सब्ज़ी और घरेलू ज़रुरत के सामान के दाम आसमान छू रहे हैं कीमते आम आदमी की हद से बाहर हो रही है। तो लोग क्या करें? किस से कहें? कहीं सुनवाई नही होती तो नतीजा ऐसे हिंसक विरोध के रुप मे सामने आता है। ज़रुरत इस बात की है कि सरकार इस बात पर ध्यान दे और महंगाई को कम करने की दवा ढूंढे। नही तो ये आग आगरा ही पूरे देश मे फैल जायेगी।
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