Monday, September 28, 2009

इतने राम कहां से लाऊँ...


किस रावण की भुजा उखाडूँ...

किस लंका को आग लगाऊँ।

घर घर रावण, घर घर लंका...

इतने राम कहां से लाऊँ।।

विजयदशमी की शुभकामनाएं

Sunday, September 13, 2009

आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना


बस कि दुश्‍वार है हर इक काम का आसां होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना
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गिरिया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की,
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना
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वा-ए-दीवानगी-ए-शौक़ कि हर दम मुझको,
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना
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जलवा अज़_बस कि तक़ाज़ा-ए-निगाह करता है,
जौहर-ए-आईना भी चाहे है मिज़ग़ां होना
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इशरत-ए-क़त्लगाह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ,
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां होना

Sunday, September 6, 2009

वो रुला कर हंस ना पाया देर तक...

वो रुला कर हंस ना पाया देर तक,

जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक।

भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये,

माँ ने फिर पानी पकाया देर तक।

ना-अखलाक बेटे तो सर दर्द बने,

बेटियों ने सर दबाया देर तक।

गुनगुनाता जा रहा था एक फकीर,

धूप रहती है ना साया देर तक।

Tuesday, September 1, 2009

सबको लुभाता है आगरा का पेठा

बेपनाह मौहब्बत की अनमोल निशानी ताजमहल की वजह से आगरा शहर पूरी दुनिया मे जाना जाता है। ताजमहल की खूबसूरती इस शहर के लिये वरदान है। लेकिन आगरा मे एक ओर चीज़ है जिसकी मिठास यहां आने वालों को लबरेज़ कर देती है, वो है यहां का पेठा। यूँ तो पेठा महाराष्ट्र, चैन्नई और राजस्थान के कई शहरों मे भी बनता है। लेकिन आगरा का पेठा भारत ही नही बल्कि पूरी दुनिया में अपने स्वाद के लिये जाना जाता है। आगरा मे बनने वाले पेठे की इतनी किस्में है कि खाने वाले के लिये ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा पेठा लिया जाये।
पेठे की शुरुआत आगरा मे मुगल काल मे हुई थी और तब से लेकर आज तक इसकी मिठास में कमी नही आयी। आगरा में रहने वाले लोगों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस पेठे के कारोबार से जुड़ा हुआ है। पेठा उघोग एसोसिएशन के मुताबिक आगरा में लगभग 10,000 लोग इस कारोबार का हिस्सा हैं। शहर के नूरी दरवाज़ा, गुड़ की मण्ड़ी, फुलट्टी बाज़ार और पेठा गली इलाके मे ये काम बहुतायत से होता है। यहां से पेठा देश के कोने-कोने मे भेजा जाता है। शहर मे पंछी पेठा, भीमसैन बैजनाथ पेठा और गोपालदास पेठा के नाम प्रमुख हैं। इनके द्वारा बनाये गये पेठे की मांग देशभर मे रहती है। पेठे बनाने के लिये कच्चे फल पेठे की ज़रुरत पड़ती है। इसे अंग्रेजी मे पम्पकिन कहते हैं। ये फल तरबूजे के आकार का होता है। एक फल का वजन एक किलो से तीस किलो तक होता है। सात-आठ किलो कच्चे फल से करीब पांच किलो पेठा तैयार हो जाता है। आगरा मे करीब 23 आढ़त व्यापारी हैं जो इस कच्चे फल की सप्लाई शहर मे करते हैं। हर सीजन मे इसकी खेती अलग इलाकों मे होती है। गर्मियों मे बरेली, सांकड़ा और कार्तिक के महीनें मे कानपुर, इटावा, औरेय्या और मैनपुरी जिलों मे इसकी खेती की जाती है।
आगरा मे हर रोज़ डेढ़ कुन्तल पेठा बनाने के लिये तकरीबन 100 किलो चीनी, 1200 लीटर पानी और 2 कुन्तल कोयले की खपत होती है। पहले केवल सादा पेठा बनाया जाता था। लेकिन अब इसकी कई किस्में बनने लगी हैं। जिसमें गिरी पेठा, केसर पेठा, अंगूरी पेठा, चैरी पेठा, रसबरी, चॉकलेट पेठा, गुलाब लड़डू, सैंड़विच पेठा और पान पेठा खास है। इनमें सबसे महंगा पान पेठा होता है जिसकी कीमत 180 से लेकर 220 रुपये प्रति किलो तक होती है। यह पेठा केवल एक-दो दिन रखा जा सकता है जबकि सादा पेठा 15 से 20 दिन तक रखा जा सकता है। पंछी पेठा के मैनेजर अखिलेश के मुताबिक खांड़ का पेठा केवल आगरा मे ही बनता है। यह काफी ठण्डा और पीलिया जैसे गम्भीर रोग के लिये फायदेमंद होता है। खांड से बना पेठा मांग पर विदेशों तक भेजा जाता है। उनके मुताबिक पेठे की सबसे बड़ी खासयित यह है कि इसमे किसी प्रकार की मिलावट नही होती।
कैसे बनता है पेठा-
सबसे पहले कच्चे फल को काटकर बीज निकाले जाते हैं और लकड़ी के गुटकों से गुदे की गुदाई की जाती है। फिर चूने के पानी से उसका कसैलापन दूर किया जाता है। इस काम मे पानी का भारी मात्रा मे प्रयोग होता है। उसके बाद गुदे के पीस करके कोयले की भट्टी पर एक बड़ी सी कढाई मे उसे उबलने के लिये रख दिया जाता है। पेठे को कई आकार देने के लिये टीन की डाईयों का इस्तेमाल किया जाता है। उसकी अशुद्धि निकालने के लिये फिटकरी और हैट्रो मसाले का प्रयोग किया जाता है। उसके बाद उबले हुये पेठे को चीनी या खांड की चासनी मे छोड़ दिया जाता है। चासनी अन्दर तक पेठे मे अपनी जगह बना लेती है। ठंडा होने पर पेठा तैयार हो जाता है।